श्रीमाँ के साथ आन्तरिक संपर्क बढ़े – जब तक वह न होगा, बाहरी संपर्को की बहुलता के द्वारा आसानी से अपने जीवन के उसी समान ढर्रे पर चलते रहोगे।
संदर्भ : माताजी के विषय में
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…