आध्यात्मिकता प्राप्त करने का अवसर

भगवान् केवल इस बात की प्रतीक्षा में हैं कि उनका ज्ञान प्राप्त किया जाये, जब कि मनुष्य उन्हें सर्वत्र अपने लिए खोजता है तथा उनकी मूर्तियां गढ़ता हुआ वास्तव में व्यावहारिक रूप में केवल अपने को पाता, मन और प्राणरूपी अहं की मूर्तियां खड़ी करता, उनकी स्थापना और पूजा करता है। जब अहंरूपी इस धुरी को त्याग दिया जाता है और इस अहं का पीछा करना छोड़ दिया जाता है, तभी मनुष्य को अपने आन्तरिक और बाह्य जीवन में आध्यात्मिकता प्राप्त करने का पहला और वास्तविक अवसर मिलता है। यह काफी नहीं है, पर यह एक आरम्भ अवश्य है; यह एक सच्चा द्वार होगा-बन्द-मार्ग नहीं।…

आध्यात्मिक मनुष्य जिसकी खोज करता है वह है, अहं का त्याग करके उस आत्म-सत्ता को पाना जो सबमें एक है, पूर्ण तथा समग्र है, और उसी के अन्दर जीते हुए उसकी पूर्णता के प्रारूप में विकसित होना, पर यह ध्यान रखना है कि इसे वैयक्तिक रूप में ही करना है-यद्यपि सबको आलिंगन में लेती हुई उसकी अपनी व्यापकता तथा उसकी चेतना की परिधि के साथ।

संदर्भ  : श्रीअरविंद (खण्ड-१५)

शेयर कीजिये

नए आलेख

अपने चरित्र को बदलने का प्रयास करना

सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…

% दिन पहले

भारत की ज़रूरत

भारत को, विशेष रूप से अभी इस क्षण, जिसकी ज़रूरत है वह है आक्रामक सदगुण,…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

एक ही शक्ति

माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः…

% दिन पहले

पत्थर की शक्ति

पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…

% दिन पहले

विश्वास रखो

माताजी,  मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब…

% दिन पहले