माताजी, मैं जानना चाहूंगा कि क्या मैं काम में अपने-आपको समर्पण कर पाने के बिन्दु तक पहुंच गया हूं? मुझे नहीं लगता। मैं ऐसी मनोवृत्ति अपनाने की कोशिश करूंगा कि उस व्यक्ति का पूरा-पूरा कहा मानूं जो कार्यभार सम्भाल रहा है : वह जो कुछ कहे, उसे बिना किसी तर्क-वितर्क के करना चाहिये।
हां, यह अच्छा है। अगर तुम आज्ञापालन नहीं करते तो छोटी-से-छोटी गलती तक की जिम्मेदारी तुम पर आ जाती है, दूसरी तरफ, अगर तुम सावधानी के साथ आज्ञापालन करो तो सारी जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है जिसने आदेश दिया है।
संदर्भ : माताजी के साथ शांति दोशी के प्रश्नोत्तर
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…