माताजी, मैं जानना चाहूंगा कि क्या मैं काम में अपने-आपको समर्पण कर पाने के बिन्दु तक पहुंच गया हूं? मुझे नहीं लगता। मैं ऐसी मनोवृत्ति अपनाने की कोशिश करूंगा कि उस व्यक्ति का पूरा-पूरा कहा मानूं जो कार्यभार सम्भाल रहा है : वह जो कुछ कहे, उसे बिना किसी तर्क-वितर्क के करना चाहिये।
हां, यह अच्छा है। अगर तुम आज्ञापालन नहीं करते तो छोटी-से-छोटी गलती तक की जिम्मेदारी तुम पर आ जाती है, दूसरी तरफ, अगर तुम सावधानी के साथ आज्ञापालन करो तो सारी जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है जिसने आदेश दिया है।
संदर्भ : माताजी के साथ शांति दोशी के प्रश्नोत्तर
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…