माताजी, मैं जानना चाहूंगा कि क्या मैं काम में अपने-आपको समर्पण कर पाने के बिन्दु तक पहुंच गया हूं? मुझे नहीं लगता। मैं ऐसी मनोवृत्ति अपनाने की कोशिश करूंगा कि उस व्यक्ति का पूरा-पूरा कहा मानूं जो कार्यभार सम्भाल रहा है : वह जो कुछ कहे, उसे बिना किसी तर्क-वितर्क के करना चाहिये।
हां, यह अच्छा है। अगर तुम आज्ञापालन नहीं करते तो छोटी-से-छोटी गलती तक की जिम्मेदारी तुम पर आ जाती है, दूसरी तरफ, अगर तुम सावधानी के साथ आज्ञापालन करो तो सारी जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है जिसने आदेश दिया है।
संदर्भ : माताजी के साथ शांति दोशी के प्रश्नोत्तर
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…