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अहंकार पर विजय पाओ

(एक शिष्य को श्रीमां का पत्र)

मानव जीवन में सभी कठिनाइयों, सभी विसंगतियों, सभी नैतिक कष्टों का कारण है हर एक के अन्दर अहंकार की अपनी कामनाओं, अपनी पसन्दों और नापसन्दों की उपस्थिति। किसी निष्काम कार्य में भी, जो दूसरों की सहायता के लिए होता है, उसमें भी जब तक तुम अहंकार और उसकी मांगों पर विजय पाना न सीख लो, जब तक तुम उसे एक कोने में चुपचाप और शान्त रहने के लिए बाधित न कर सको, अहंकार हर उस चीज के विरुद्ध क्रिया करता है जो उसे पसन्द न हो, एक आन्तरिक तूफान खड़ा करता है जो सतह पर उठ आता है और सारा काम बिगाड देता है।

अहंकार पर विजय पाने का यह काम लम्बा, धीमा और कठिन है। यह सतत सतर्क रहने की अविच्छिन्न प्रयास की मांग करता है। यह प्रयास कुछ लोगों के लिए ज्यादा आसान और कुछ के लिए ज्यादा कठिन होता है।

हम यहां आश्रम में श्रीअरविन्द के ज्ञान और उनकी शक्ति की सहायता से आपस में मिल कर एक ऐसे समाज को चरितार्थ करने के प्रयास में हैं जो अधिक सामञ्जस्यपूर्ण, अधिक ऐक्यपूर्ण, और परिणामतः जीवन में अधिक प्रभावकारी और समर्थ हो।

जब तक में भौतिक रूप से तुम सबके बीच उपस्थित रहती थी, मेरी उपस्थिति अहंकार पर प्रभुत्व पाने में तुम्हारी सहायता करती थी, अतः, मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से तुमसे बहुधा इस विषय में कुछ कहना जरूरी न था।

लेकिन अब इस प्रयास को हर व्यक्ति के जीवन का आधार बनना चाहिये। विशेषकर उनके जीवन का जो जिम्मेदार स्थिति में हैं और जिन्हें
ओरों की देखभाल करनी होती है। नेताओं को हमेशा उदाहरण सामने रखना चाहिये, नेताओं को हमेशा उन गुणों का अभ्यास करना चाहिये जिनकी वे उन लोगों से मांग करते हैं जो उनकी देख-रेख में हैं; उन्हें समझदार, धीर, सहनशील, सहानुभूति, ऊष्मा और मैत्रीपूर्ण सद्भावना से भरा होना चाहिये। ये चीजें अहंकार के कारण या अपने लिए मित्र बटोरने के लिए नहीं, अपितु औरों को समझने और उनकी सहायता करने की उदारता के कारण होनी चाहिये।

सच्चा नेता होने के लिए अपने-आपको, अपनी चाह और पसन्द को भूल जाना अनिवार्य है।

यही चीज है जिसकी मैं अब तुमसे मांग कर रही हूं, ताकि तुम अपनी जिम्मेदारियों का उस तरह सामना कर सको जैसे करना चाहिये। और तब तुम देखोगे कि जहां तुम अनबन और फूट पाते थे, वे गायब हो गयी हैं और उनकी जगह सामञ्जस्य, शान्ति और आनन्द ने ले ली है।

तुम्हें मालूम है कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं और तुम्हें सहारा देने, सहायता देने और रास्ता दिखाने के लिए सदा तुम्हारे साथ हूं।

आशीर्वाद।

 

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)

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