अविश्वासी मन सर्वदा संदेह करता है, क्योंकि वह समझ नहीं सकता; परन्तु भगवत्-प्रेमी का विश्वास जानने के लिये आग्रह करता है यद्यपि समझ नहीं पाता। हमारे अन्धकार के लिये ये दोनों ही आवश्यक हैं। परन्तु इस विषय में कोई सन्देह नहीं कि उन दोनों में से अधिक शक्तिशाली कौन है। जिसे मै अभी नहीं समझ पाता उसे किसी दिन आयत्त कर लूंगा, पर यदि मैं विश्वास और प्रेम को ही खो बेठूँ तो एकदम उस लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाऊंगा जिसे भगवान् ने मेरे सामने रखा है।
संदर्भ : विचार और सूत्र
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…