साधना-पथ पर अवसाद, अन्धकार और निराशा के दौरों की एक परम्परा-सी चली आती है। ऐसा लगता है कि ये पूर्वी या पश्चिमी सभी योगों के नियत अंग-से रहे हैं। मैं स्वयं इनके विषय में सब कुछ जानता हूं, परन्तु अपने अनुभव के द्वारा मैं इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि ये अनावश्यक परम्परा हैं तथा यदि कोई चाहे तो इनसे बच सकता है। यही कारण है कि जब कभी ये तुम्हारे अन्दर या दूसरों में आते हैं तो मैं उनके सामने श्रद्धा का मन्त्र उद्घोषित करने का यत्न करता हूं। यदि ये फिर भी आयें तो मनुष्य को उन्हें यथासम्भव शीघ्र-से-शीघ्र पार करके पुनः प्रकाश में वापस आ जाना
चाहिये।
संदर्भ : श्रीअरविंद अपने विषय में
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…