अवतार की सम्भावना पर विश्वास करने या न करने से प्रकट तथ्य पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
अगर भगवान किसी मानव शरीर में अभिव्यक्त होने का चुनाव करते हैं, तो मेरी समझ में नहीं आता कि कोई भी मानव विचार, स्वीकृति या अस्वीकृति उनके निर्णय में रत्ती भी भी प्रभाव कैसे डाल सकते हैं भला; और अगर वे मानव शरीर में जन्म लेते हैं, तो मनुष्यों की अस्वीकृति तथ्य को तथ्य होने से रोक नहीं सकती। तो इसमें उत्तेजित होने की बात ही क्या है ।
चेतना केवल पूर्ण शांत-स्थिरता और नीरव निश्चलता में, पक्षपातों और पसंदों से मुक्त होकर ही सत्य को देख सकती हैं ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…