तुम दुःखी, बहुत उदास, निरुत्साहित और अप्रसन्न हो जाते हो : “आज चीज़ें अनुकूल नहीं है। वे कल जैसी नहीं हैं, कल वे कितनी अद्भुत थीं; लेकिन आज वे सुखद नहीं रहीं !” क्यों ? क्योंकि कल तुम पूर्ण समर्पण की अवस्था में थे – कम या अधिक पूर्ण – और आज तुम उस अवस्था में नहीं रहे। इसलिए, कल जो चीज़ इतनी सुंदर थी वह आज सुंदर नहीं रही। तुम्हारे अंदर जो ख़ुशी थी, यह विश्वास था, यह आश्वासन था कि सब कुछ ठीक होगा, कि वह महान ‘कार्य’ सिद्ध हो जायेगा, यह निश्चिति – यह सब ढक जाता है, समझे, उसका स्थान ले लेता है एक प्रकार का संदेह, और हाँ, एक असंतोष : “चीज़ें सुंदर नहीं हैं, जगत दुष्ट है, लोग अच्छे नहीं हैं।” कभी-कभी तो बात यहाँ तक पहुँच जाती है : “आज खाना अच्छा नहीं है। यह बैरोमीटर है! तुम अपने-आपसे तुरंत कह सकते हो कि कहीं कोई कपट पैठ गया है। यह जानना बहुत आसान है, इसके लिए बहुत ज्ञानी होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि जैसा कि श्रीअरविंद ने ‘योग के तत्व’ पुस्तक में कहा है : हम सुखी हैं या दुःखी, संतुष्ट हैं या असंतुष्ट, यह हम अच्छी तरह जानते हैं, इसके लिए अपने-आपसे पूछने की, जटिल सवाल करने की कोई ज़रूरत नहीं, हम जानते हैं ! – हाँ, तो यह बहुत सरल है ।
जिस क्षण तुम दुःख अनुभव करने लगो उसी क्षण तुम उसके नीचे लिख सकते हो, “मैं सच्चा नहीं हूँ ।” ये दो वाक्य साथ-साथ चलते हैं :
“मैं दुखी हूँ।”
“मैं सच्चा नहीं हूँ ।”
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४
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