सामान्यतः जो चला गया या चली गयी है, जाने के बाद उसके शरीर का कुछ भी हो, उसकी चेतना को कोई कष्ट नहीं पहुंचता । लेकिन स्वयं जड़-भौतिक शरीर में एक चेतना है जिसे “आकार या रूप की आत्मा” कहते हैं और उसे एकत्रित कोषाणुओं से पूरी तरह बाहर निकालने में समय लगता है ; सारे शरीर में सड़ांध का शुरू होना उसके चले जाने के बाद पहला चिन्ह है , और जाने से पहले शरीर में जो कुछ हो रहा है उसके बारे में उसे एक तरह का अनुभव हो सकता है। इसलिए हमेशा यह ज्यादा अच्छा होता है कि अन्त्येष्टि में जल्दबाज़ी न की जाये।
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…