सामान्यतः जो चला गया या चली गयी है, जाने के बाद उसके शरीर का कुछ भी हो, उसकी चेतना को कोई कष्ट नहीं पहुंचता । लेकिन स्वयं जड़-भौतिक शरीर में एक चेतना है जिसे “आकार या रूप की आत्मा” कहते हैं और उसे एकत्रित कोषाणुओं से पूरी तरह बाहर निकालने में समय लगता है ; सारे शरीर में सड़ांध का शुरू होना उसके चले जाने के बाद पहला चिन्ह है , और जाने से पहले शरीर में जो कुछ हो रहा है उसके बारे में उसे एक तरह का अनुभव हो सकता है। इसलिए हमेशा यह ज्यादा अच्छा होता है कि अन्त्येष्टि में जल्दबाज़ी न की जाये।
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…