अन्तरात्मा की भूमिका


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

मधुर मां,

अन्तरात्मा की क्या भूमिका है?

 

अन्तरात्मा के बिना तो हमारा अस्तित्व ही न होगा!

अन्तरात्मा वह है जो कभी भी भगवान् को छोड़े बिना उनसे आती है और अभिव्यक्त होना बन्द किये बिना उनके पास लौट जाती है।

अन्तरात्मा भगवान् है जिसे भगवान् होना छोड़े बिना व्यक्ति बनाया गया है।

अन्तरात्मा में व्यक्ति और भगवान् शाश्वत रूप से एक हैं; अतः, अपनी अन्तरात्मा को पाने का अर्थ है भगवान् को पाना, अपनी अन्तरात्मा के साथ तादात्म्य पाने का अर्थ है भगवान् के साथ एक होना।

अतः, यह कहा जा सकता है कि अन्तरात्मा का कार्य है मनुष्य को एक सच्ची सत्ता बनाना।

 

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)


0 Comments