मनुष्यों को उनके दुख-दर्द से छुटकारा दिलाने के प्रबल आवेग को ही अनुकम्पा या करुणा कहा जाता है। किसी के दु:ख – दर्द को देख कर या उसके बारे में सोच कर असहाय दुर्बलता का अनुभव करना दया या तरस खाना कहलाता है। दुर्बल असहायता अनुकम्पा नहीं है, यह  तरस खाना है। अनुकम्पा शक्तिशाली का पथ है, दया दुर्बल का रास्ता। अनुकम्पा से सञ्चलित भगवान बुद्ध अपने पुत्र-कलत्र, बंधु-बांधवों को रोता-बिलखता छोड़, संसार के दु:ख मिटाने, अपने पथ पर बढ़ चले। धरती को समस्त कष्टों और दु:खों से छुटकारा दिलाने के लिए, तीव्र अनुकम्पा और करुणा से मत्त ‘काली’, धरती पर असुरों का विनाश कर, धरा पर उनके रक्त की बाढ़ ले आयीं, ताकि सबको दु:ख से उबारा जा सके।

संदर्भ : श्रीअरविंद की बांग्ला रचनाओं से 

शेयर कीजिये

नए आलेख

अहंकार

जब पहले मानवजाति की रचना हुई तो अहंकार एक करने वाला उपकरण था। सत्ता की…

% दिन पहले

सहायता

सहायता के लिये श्रीअरविंद को पुकारो और सब कुछ ठीक हो जायेगा। संदर्भ : श्रीमातृवाणी…

% दिन पहले

सबसे पहली आवश्यक चीज़

योग के लिए अपने आपको तैयार करने के लिए क्या करना चाहिये? सबसे पहले व्यक्ति…

% दिन पहले

मरकर दोबारा जन्म

यदि व्यक्ति यह अनुभव करे कि उसका इस जीवन का कार्य समाप्त हो गया है…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का कार्य

मैं श्रीअरविंद से मिलने के लिए भारत आयी। मैं श्रीअरविंद के साथ रहने के लिए…

% दिन पहले

शोक नहीं करो

यदि अग्नि-परीक्षाओं या त्रुटियों ने तुम्हें पछाड़ दिया है, यदि तुम दुःख के अथाह गर्त…

% दिन पहले