जो कुछ ग्रहणशील नहीं है वह सब कुचले जाने का अनुभव करता है, लेकिन जो ग्रहणशील है वह इसके विपरीत एक… एक प्रबल विस्तार का अनुभव करता है।
एक ही समय में दोनों।…
हां, जो चीज कुचली जाती है वह, वह चीज है जो प्रतिरोध करती है, जो ग्रहणशील नहीं है। उसे केवल अपने-आपको खोल देना है। तब वह चीज मानों… दुर्जेय वस्तु बन जाती है…। यह असाधारण है। यह हमारी शताब्दियों की आदत है, है न, जो प्रतिरोध करती है और ऐसा संस्कार देती
है। लेकिन जो कुछ भी खुल जाता है… व्यक्ति को ऐसा लगता है मानों वह बड़ा, बड़ा, बड़ा होता जा रहा है…। यह बहुत भव्य है। ओह ! यह…
सन्दर्भ : पथ पर
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…