अतिमानव कौन है? वह जो इस जड़ाभिमुखी भग्न मनोमय मानव सत्ता से ऊपर उठ सके तथा एक दिव्य शक्ति, एक दिव्य प्रेम और आनन्द एवं एक दिव्य ज्ञान के अन्दर पहुँच कर अपने-आपको विश्व-भावापन्न और दिव्य-भावापन्न बना सके।

यदि तू इस संकीर्ण मानवीय अहंभाव को बनाये रखे और अपने को अतिमानव समझे तो तू अपनी ही अहंता के फेर में पड़ा हुआ मूढ़ है, अपनी निजी शक्ति के हाथों का खिलौना और अपनी निजी भूल-भ्रान्तियों की कठपुतली है।

नीत्शे ने अतिमानव को इस रूप में देखा मानों ऊँट की स्थिति से बाहर निकलती हुई कोई सिंह-आत्मा हो, पर अतिमानव का सच्चा आभिजातिक चिह्न और लक्षण तो यह है कि सिंह कामधेनु के ऊपर खड़े हुए ऊँट की पीठ पर अवस्थित हो। यदि तू समस्त मानवजाति का दास न बन सके तो तू उसका स्वामी बनने के योग्य नहीं है, और यदि तू अपने स्वभाव को वसिष्ठ की कामधेनु न बना सके जिसके थन से सारी मनुष्यजाति अपनी अभीप्सित वस्तु ले सके तो भला तेरे सिंह-सरीखे अतिमानवत्व का क्या
लाभ?

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले

गुप्त अभिप्राय

... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…

% दिन पहले

मुझसे क्या चाहते हैं ?

भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…

% दिन पहले

सूर्यालोकित पथ

सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…

% दिन पहले

तुम्हारा भविष्य

एक चीज़ के बारे में तुम निश्चित हो सकते हो - तुम्हारा भविष्य तुम्हारें ही…

% दिन पहले