प्राण एक अच्छा यंत्र है पर बुरा मालिक है। यदि तुम इसे इसकी रुचि और अरुचि, इसकी मौजों, इसकी कामनाओं, इसके बुरे अभ्यासों का अनुसरण करने दो तो यह तुम्हारा मालिक बन जायेगा और सुख -शांति प्राप्त करना फिर संभव न रहेगा। उस समय यह तुम्हारा यंत्र नहीं बनता और न भागवत शक्ति का यंत्र बनता है, बल्कि अज्ञान की किसी शक्ति का अथवा किसी विरोधी शक्ति का भी यंत्र बन जाता है जो इसे पकड़ सकती और इसका उपयोग कर सकती है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
मेरी प्यारी माँ, काश ! मैं अपनी अज्ञानी सत्ता को यह विश्वास दिला पाता कि…
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…