मैंने बहुत बार लोगों को यह कहते सुना है: “ओह ! अब जब में अच्छा बनने की कोशिश करता हूँ तो ऐसा लगता है कि सब मेरे साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार करते हैं!” लेकिन यह खास तुम्हें यह सिखाने के लिए होता है कि स्वार्थ- भरे उद्देश्य के साथ अच्छा नहीं बनना चाहिये, इसलिए भी अच्छा नहीं बनना चाहिये कि दूसरे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करें-अच्छा बनने के लिए अच्छा बनना चाहिये।
हमेशा एक ही पाठ सीखना होता है : जितना अच्छा कर सकते हो करते चलो, जितना कर सको, उससे अधिक अच्छा करो; लेकिन परिणाम की आशा के बिना, परिणाम के बारे में सोचे बिना। यह मनोवृत्ति, अपने अच्छे कार्य के लिए पुरस्कार की आशा करना -अच्छा इसलिए बनना कि हम सोचते हैं कि उससे जीवन अधिक सरल होगा-अच्छे कार्य के मूल्य को घटा देता है।
अच्छाई के प्रेम के कारण अच्छा बनना चाहिये, ईमानदारी के प्रेम के कारण ईमानदार होना चाहिये, पवित्रता के प्रेम के कारण पवित्र होना चाहिये और निःस्वार्थता से प्रेम के कारण निःस्वार्थ होना चाहिये तब तुम राह पर आगे बढ़ोगे, यह बात निश्चित है।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…