अचंचल मन का अर्थ यह नही है कि उसमें कोई विचार या मनोमय गतियाँ एक- दम होगी ही नही, बल्कि यह अर्थ है कि ये सब केवल ऊपर-ही-ऊपर होंगी और तुम अपने अन्दर अपनी सत्य सत्ता को इन सबसे अलग अनुभव करोगे, जो इन सबको देखती तो है पर इनके प्रवाह में बह नही जाती, जो यह योग्यता रखती हैं कि इन सबका निरीक्षण करे और निर्णय करे तथा जिन चीजों का त्याग करना हो उन सबका त्याग करे एवं जो कुछ सत्य चेतना और सत्य अनुभूति हो उन सबको ग्रहण और धारण करे।
सन्दर्भ : श्रीअरविंद के वचन (भाग – २)
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…