
आश्रम के दो वातावरण
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें अनुभूति पाने की कुछ क्षमता हो, बाहर से यहाँ आते...
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें अनुभूति पाने की कुछ क्षमता हो, बाहर से यहाँ आते...
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह न तो अपने प्रति सच्चा है और ना ही प्रकृति...
सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें लक्ष्य की ओर ले जाने वाले पथ पर अपने को...
तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और तुम अन्त तक पहुँच जाओगे। यदि तुम ऐसा करो तो...
भगवान हमें जो दु:ख देता हैं उसके चार स्तर होते हैं : (१) जब वह केवल दु:ख ही होता है ; (२) जब वह एक...
भगवान जब बुरी-से-बुरी परीक्षा लेते हैं तब वह अच्छे-से-अच्छा पथ दिखाते हैं, जब वह कठोरतापूर्वक दण्ड देते है तब वह संपूर्णतः प्रेम करते हैं, जब...
इन मायावी वनों में एक देवशिशु खेल रहा है, आत्मभाव की धाराओ के तट पर बंशी बजाता रसमाधुरी बहा रहा है, कब उसकी पुकार की...
स्वाभाविक है कि महानतर अनुभूतियाँ होने पर सत्ता उल्लासित हो उठती है, साथ-ही-साथ उसमें अद्भुतता तथा चमत्कार का भाव भी आ सकता है, लेकिन उल्लास...
एक बच्चे की तरह बन जाना और अपने-आपको संपूर्णत: दे देना तब तक असंभव है, जब तक कि चैत्य पुरुष का प्रभुत्व न हो और...
भगवान ने तुम्हें इसलिए अपना नहीं बनाया है कि तुम मनुष्यों की प्रशंसाओं को एकत्र करो, बल्कि इसलिये बनाया है कि निर्भय होकर उनके आदेश...