
माताजी और मैं
माताजी और मैं एक ही हैं पर दो शरीरों में, यह आवश्यक नहीं है कि दोनो शरीर सदा एक ही काम करें। इसके विपरीत, क्योंकि...
माताजी और मैं एक ही हैं पर दो शरीरों में, यह आवश्यक नहीं है कि दोनो शरीर सदा एक ही काम करें। इसके विपरीत, क्योंकि...
तुम्हारे मित्र का यह विचार कि यहाँ से मंत्र मिलना आवश्यक है और उसके लिए उसका यहाँ आना अनिवार्य है,पूरी तरह ग़लत है। इस योग...
यह कहा जा सकता है कि मैं पूर्णयोग कर रहा हूँ ? प्रत्येक व्यक्ति जो श्रीमाँ की ओर मुड़ा है, हमारा योग कर रहा है...
नहीं, आश्रम में रहना पर्याप्त नहीं है – व्यक्ति को श्रीमाँ के प्रति उद्घाटित होना होगा और उस कीचड को अपने ऊपर से साफ करना...
श्रीमाँ दोनों तरीकों से देती हैं – नेत्रों के द्वारा चैत्य को प्रदान करती हैं और अपने हाथों द्वारा भौतिक वस्तुएँ देती हैं। संदर्भ :...
क्या यह हो सकता है कि एक व्यक्ति जो श्रीअरविंद की ओर खुला है, माँ की ओर खुला न हो ? क्या यह बात ठीक...
एक ही शक्ति है,वह है माताजी की शक्ति-या अगर तुम इस तरह रखना चाहो कि-श्रीमाँ श्रीअरविंद की शक्ति है । संदर्भ : माताजी के विषय...
एक चीज़ जो महत्वपूर्ण है वह है – आन्तरिक मनोभाव को बनाये रखना और सभी बाहरी परिस्थितियों से मुक्त होकर श्रीमाँ के साथ आन्तरिक संपर्क...
क्या आपके कार्य तथा श्रीमाँ के कार्य में कोई अन्तर है – मेरा मतलब है कि शक्ति की प्रभावकारिता में क्या कोई अन्तर है ?...
जो भौतिक रूप से श्रीमाँ के पास नहीं हो सकते, वे उसके लिए अभीप्सा तो करें, लेकिन उसे पाने के लिए ज़मीन-आसमान एक करने की...