
श्रीअरविंद की गायत्री
युग बदलते हैं और परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ नए आदर्शों और नए मंत्रों की आवश्यकता होती है। प्रभु पुनः अवतार लेते हैं और युग...
युग बदलते हैं और परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ नए आदर्शों और नए मंत्रों की आवश्यकता होती है। प्रभु पुनः अवतार लेते हैं और युग...
यह तेरे विचरण की धरती एक सीमा है जिसने स्वर्ग को विलग कर दिया है; यह तेरे जीवन-यापन की विधि उस ज्योति को जो तू...
देखा है जिन्होने मुझे, कभी न संतप्त वे। संदर्भ : सावित्री
जो मन की पहुँच से अति परे है मैं वह परम गुह्यता हूं, सूर्यों की श्रमसाध्य परिक्रमाओं की मैं लक्ष्य हूं; मेरी ज्वाला और माधुर्य...
संकुचित अनुभव की एक संकीर्ण झालर सम इस जीवन को जो हमारी बांट में आया है, पीछे छोड़ देते हैं, अपने लघु विहारों को, अपनी...
मन जिसे जानता नहीं था ऐसे सत्य ने अपना मुख प्रकटा दिया तब हम वह श्रवण कर सकते हैं, जो नश्वर कानों ने पहले कभी...
वर्तमान में हम जो देख पाते हैं वह आने वाली भावी की एक छाया मात्र है। संदर्भ : “सावित्री”
हमारे अन्तर में एक आकारहीन स्मृति अभी तक चिपकी है औ’ कभी-कभी, जब हमारी द़ृष्टि अन्तर्मुखी होती है, पार्थिवता का अज्ञान-पट हमारी आंखों से उठा...
उन घड़ियों में जब अन्तर के प्रकाश दीप जल उठते हैं और इस जीवन के प्राणप्रिय अतिथि बाहर छूट जाते हैं, हमारी चैत्य-सत्ता एकाकी बैठ...
हमने जो सब सीखा है एक शंका भरे अनुमान जैसा है सब सफलताएं एक पथ या एक अवस्था सम दीखती हैं जिसका अग्रिम छोर हमारी...