माताजी की चेतना और मेरी चेतना के बीच का विरोध पुराने दिनों का आविष्कार था (जिसका कारण मुख्यतया 'क्ष', 'त्र'…
किसी भी साधक को कभी भी अयोग्यता के और निराशाजनक विचारों नहीं पोसना चाहिये-ये एकदम से असंगत होते हैं, क्योंकि…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है और सभी वस्तुओं का समर्थन…
प्रत्येक का साधना करने और भगवान तक जाने का अपना तरीक़ा होता है और दूसरे उसे कैसे करते हैं इसमें…
यह कब कहा जा सकता है कि व्यक्ति आन्तरिक रूप से माँ की वाणी सुनने को तैयार है? जब व्यक्ति…
मैं और श्रीमाँ एक और समान हैं। और साथ ही वे यहाँ परमा हैं और उनका अधिकार है कि वे…
तुम माँ के बच्चे हो और माँ का अपने बच्चों के प्रति प्रेम असीम होता है, और वे उनके स्वभाव…
माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः स्वप्न में देखा हुआ तुम्हारा…
प्रश्न-जब साधक में न तो अभीप्सा ही उठती हो, न कोई अनुभूति ही होती हो, तब उसे साधना जारी रखने…
कई बार काम करते हुए मैं सोचा करता हूं कि आखिर इसका प्रयोजन क्या है? कृपया बतलाइये कि काम करते…