आध्यात्मिक स्वप्न
जब किसी साधक को आध्यात्मिक सत्य के स्वप्न आते हैं तो क्या इसका यह अर्थ नहीं होता कि उसकी प्रकृति का रूपांतर हो रहा है...
जब किसी साधक को आध्यात्मिक सत्य के स्वप्न आते हैं तो क्या इसका यह अर्थ नहीं होता कि उसकी प्रकृति का रूपांतर हो रहा है...
जो लोग पूरी तरह सांसारिक जीवन में फंसे रहते हैं और कठिनाई या विपत्ति के समय ही भगवान को याद करते है, क्या ऐसे लोगों...
भगवान हृदय में देखते हैं और जब समझते हैं कि अब ठीक समय आ गया है, तब पर्दा हटा देते हैं। तुमने भक्ति के सिद्धान्त...
…विनम्रता पहली आवश्यकता है, क्योंकि जिसमें अहंकार और घमण्ड है वह परम या उच्चतम की सिद्धि नहीं पा सकता। संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
न कोई आनंद, न बल। पढ़ने-लिखने की इच्छा भी नहीं होती-मानो कोई मुर्दा आदमी चल – फिर रहा हो। आप समझ रहे हैं मेरी स्थिति...
आपने कहा है कि गलत गति का दमन करने से वह बस दब जाती है, यदि उसे पूरी तरह निकालना हो तो उसे एकदम त्यागना...
कोई भी व्यक्ति अपनी चेतना को मानसिक और प्राणिक स्तर से ऊपर उठा सकता है और ऊपर से शक्ति, आनंद, प्रकाश ,ज्ञान को नीचे उतार...
यह सोचना भूल है कि एक विचार अथवा संकल्प केवल तभी प्रभाव डाल सकता है जब वह वचन या कर्म में अभिव्यक्त किया जाता है...
हमारी असमर्थता के भाव ने ही अंधकार का अन्वेषण किया है। वास्तव में ‘प्रकाश’ के सिवाय और कुछ नहीं हैं। यह तो बेचारी मानव दृष्टि...
श्रद्धा, भगवान् के ऊपर निर्भरता, भागवत शक्ति के प्रति आत्म-समर्पण और आत्मदान-ये सब आवश्यक और अनिवार्य हैं। परन्तु भगवान् के ऊपर निर्भर रहने के बहाने...