
रहस्य-ज्ञान – १३
वर्तमान में हम जो देख पाते हैं वह आने वाली भावी की एक छाया मात्र है। संदर्भ : “सावित्री”
वर्तमान में हम जो देख पाते हैं वह आने वाली भावी की एक छाया मात्र है। संदर्भ : “सावित्री”
हमारे अन्तर में एक आकारहीन स्मृति अभी तक चिपकी है औ’ कभी-कभी, जब हमारी द़ृष्टि अन्तर्मुखी होती है, पार्थिवता का अज्ञान-पट हमारी आंखों से उठा...
उन घड़ियों में जब अन्तर के प्रकाश दीप जल उठते हैं और इस जीवन के प्राणप्रिय अतिथि बाहर छूट जाते हैं, हमारी चैत्य-सत्ता एकाकी बैठ...
हमने जो सब सीखा है एक शंका भरे अनुमान जैसा है सब सफलताएं एक पथ या एक अवस्था सम दीखती हैं जिसका अग्रिम छोर हमारी...
पृथ्वी की पंखदारी कल्पनाएं स्वर्ग में सनातन सत्य के अश्व हैं, आज की असम्भावना भावी पदार्थों के भागवत संकेत हैं। संदर्भ : “सावित्री”
हम अज्ञात से बाहर निकलते हैं, अज्ञात में लौट जाते हैं। संदर्भ : “सावित्री”
अपने अन्तर में हम सतत एक जादुई चाबी छिपाये रहते हैं यह जीवन के प्राण-रुद्ध एक खोल में बन्द है। संदर्भ : “सावित्री”
हमारी बाहरी घटनाओं के कारण-बीज हमारे अन्तर में हैं, और इस उद्देश्यहीन दैवनियति का भी है जो विधि के संयोगसम दिखती है, हमारी बौद्धिकता से...
हमारे जीवनों के रूप का आकार गढ़ने वाली ये घटनाएं अवचेतना के स्पन्दनों की एक शून्यमात्र हैं जिन्हें हम कदाचित् ही अनुभव कर पाते या...
हमारा क्षेत्र बहिर्मुखी तात्कालिकता का है, और मृत भूतकाल हमारी पृष्ठभूमि तथा आधार है; मन अन्तरात्मा को बन्दी बना रखता है, हम अपने कर्मों के...