
श्रद्धा के साथ
“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजन चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ ।” वह...
“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजन चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ ।” वह...
हम सब के अन्दर समरूप से जो भागवत उपस्थिती है वह कोई अन्य प्राथमिक मांग नहीं करती यदि एक बार इस प्रकार से श्रद्धा और...
“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजना चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ। ” वह...
परम श्रद्धा वह है जो सबके अन्दर ईश्वर को देखती है और उस श्रद्धा के नेत्र के लिए अभिव्यक्ति तथा अनभिव्यक्ति एक ही परमेश्वर हैं...
यह जगत जिस संघर्ष की रंगभूमि है गीता उसके दो पहलुओं पर जोर देती है, एक है आन्तरिक संघर्ष, दूसरा बाह्य युद्ध। आन्तरिक संघर्ष में...
… मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई है, यह एक ऐसे बीहड़ वन के समान गहन और...
… हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ और इति नहीं है, कि सामञ्जस्य संग्राम से बड़ी चीज...
भगवान् के अवतार के आने का आन्तरिक फल उन लोगों को प्राप्त होता है जो भगवान् की इस क्रिया से दिव्य जन्म और दिव्य कर्मों...
वासुदेवः सर्वम् इति का यही अर्थ है कि यह सारा जगत् भगवान् है, इस जगत् में जो कुछ है और इस जगत् से अधिक भी...