माताजी के विषय में

आंतरिक संबंध

यदि किसी को निकट आंतरिक संबंध प्राप्त हो तो वह माताजी को सदैव अपने पास और अंदर तथा चारों ओर…

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समग्र समर्पण

यदि सत्ता का कोई अंग समर्पण करे और कोई दूसरा अंग जहाँ-का-तहाँ अड़ा रह जाये, अपने ही रास्ते पर चलता…

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सतत उपस्थिति

​हमेशा इस तरह रहो मानों तुम परात्पर प्रभु और भगवती माता की आंखों के एकदम नीचे हो । कोई ऐसा…

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श्रद्धा और समर्पण

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक संपूर्ण होंगे उतना ही अधिक तुम कृपापात्र और सुरक्षित होओगे ! और यदि…

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उनकी कृपा बरसेगी अवश्य…

जीवनयात्रा में समस्त भय, संकट और विपदा का सामना करने के लिए कवच के रूप में तुम्हारे पास केवल दो…

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श्री माँ की ओर खुले रहने का तात्पर्य

​श्रीमाँ की ओर खुले रहने का तात्पर्य है बराबर शांत-स्थिर और प्रसन्न बने रहना तथा दृढ़ विश्वास बनाये रखना न…

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योग के दो महान् चरणों में से एक

श्रीमाँ श्रीअरविन्द' की शिष्या नहीं हैं। उन्हें मेरे समान ही सिद्धि और अनुभूति प्राप्त थी। श्रीमाँ की साधना छोटी उम्र…

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घर और काम में साधना

तुम्हारें लिए यह बिल्कुल संभव है कि तुम घर पर और अपने काम के बीच रह कर साधना करते रहो…

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कुछ भी असंभव नहीं

यदि चैत्य पुरुष की प्रकृति जाग्रत हो जाए, अपने पीछे विद्यमान माताजी की चेतना और शक्ति के द्वारा तुम्हारा पथ-प्रदर्शन…

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रूपांतर

यदि अपनी भक्ति और समर्पण के पीछे तुम अपनी इच्छाओं को, अहंकार की अभिलाषाओं और प्राणों के हठों को छिपा…

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