
कितनी मधुरता
जब भक्त लोग श्रीमाँ के दर्शन को जाते थे तो उनके दिव्य रूप और माधुरी के प्रभाव से सुध-बुध खो बैठते थे। समय कैसे पंख...
जब भक्त लोग श्रीमाँ के दर्शन को जाते थे तो उनके दिव्य रूप और माधुरी के प्रभाव से सुध-बुध खो बैठते थे। समय कैसे पंख...
युग बदलते हैं और परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ नए आदर्शों और नए मंत्रों की आवश्यकता होती है। प्रभु पुनः अवतार लेते हैं और युग...
प्रातः पुष्प वितरण के समय श्रीमाँ को लगभग दो घंटे एक ही स्थान पर खड़े रहना पड़ता था। एक दिन एक साधिका प्रीति दास गुप्ता...
मोनिका चंदा अपने दोनों नेत्रों की दृष्टि खो बैठी थी। फिर भी यह वृद्ध भक्त-साधक महिला अपने वैभवमय जीवन को विस्मृत करके अकेली ही एक...
लता जौहर का एक भाई नरेंद्र किसी काम से मद्रास गया था। वहाँ पहुँचकर अचानक ही वह बहुत बीमार हो गया। उनके पिता श्री सुरेन्द्रनाथ...
२६ नवम्बर १९२६ को श्रीअरविंद ने अपने कक्ष में एकांतवास आरंभ कर दिया। इसके बाद वे आरंभ में वर्ष में केवल तीन बार और बाद...
श्रीअरविंद थे परम करुणामय। वे पशु-पक्षियों तक की सुविधा-असुविधा का ध्यान रखते थे। कभी-कभी एक बिल्ली आकार आराम से उस कुर्सी पर सो जाती थी...
श्रीमाँ ने अपनी एक सहायिका से कहा था, “बहुत से लोग जब यहाँ आते है तब जो वस्तु उन्हें अशांत करती है, उन्हें उसी का...
एक अन्य अवसर पर जब मैगी श्रीमाँ का कमरा साफ कर रही थी, उसने एक खिड़की खोली जो दीर्घकाल से खोली नहीं गई थी। यध्यपि...
श्रीमाँ का कमरा सजावट की वस्तुओं से हमेशा भरा हुआ होता था जो उनको बच्चो ने बड़े प्रेम से भेंट की थी । मैगी माँ...