भक्ति का सिद्धान्त
भगवान हृदय में देखते हैं और जब समझते हैं कि अब ठीक समय आ गया है, तब पर्दा हटा देते हैं। तुमने भक्ति के सिद्धान्त...
भगवान हृदय में देखते हैं और जब समझते हैं कि अब ठीक समय आ गया है, तब पर्दा हटा देते हैं। तुमने भक्ति के सिद्धान्त...
यह सम्पूर्ण प्रकृति इक मूक भाव से केवल मात्र उसी को पुकारती है, कि तपकते पीड़ाकूल जीवन के व्रण उसके चरण-स्पर्श से भर-भर जाएं, औ’...
प्रश्न-जब साधक में न तो अभीप्सा ही उठती हो, न कोई अनुभूति ही होती हो, तब उसे साधना जारी रखने के लिए क्या करना चाहिये?...
प्रश्न : क्या अभीप्सा की क्षमता अलग-अलग साधकों में उनकी प्रकृति के अनुसार बदलती रहती है ? उत्तर: नहीं, अभीप्सा की क्षमता सभी में एक-सी...
तुमने सर्वदा ही अपने मन और संकल्पशक्ति की क्रिया पर अत्यधिक भरोसा रखा है-इसी कारण तुम उन्नति नहीं कर पाते। यदि तुम माताजी की शक्ति...
जिस मनुष्य में जीवन और उसकी कठिनाइयों का मुक़ाबला धैर्य और दृढ़ता के साथ करने का साहस नहीं है, वह कभी साधना की और से भी...
आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक से पूरी तरह लाभ उठाने के लिए शिष्य को तीन शर्तों को निभाना होता है। पहली: उसे किसी भी विरोधी या किसी भी...
माताजी की शक्ति केवल ऊपर , सत्ता के शिखर पर ही नहीं है, वह तुम्हारें साथ और तुम्हारे पास भी है। जिस समय तुम्हारी प्रकृति...
तुम्हारे अंदर का यह संघर्ष (श्रीक़ृष्ण की भक्ति और माताजी के दिव्यत्व के बोध के बीच का संघर्ष) एकदम अनावश्यक है क्योंकि ये दोनों चीज़ें...
यदि तुम सत्य का यन्त्र बनना चाहो तो तुम्हें सदा सच ही बोलना होगा न कि झूठ। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि तुम्हें प्रत्येक...