भागवत मुहूर्त
… भागवत मुहूर्त में धो डालो अपनी आत्मा की समस्त आत्म-प्रवञ्चना, पाखण्ड तथा दम्भभरी आत्म-चाटुकारिता को, ताकि तुम सीधे अपनी आत्मा में देख सको और...
… भागवत मुहूर्त में धो डालो अपनी आत्मा की समस्त आत्म-प्रवञ्चना, पाखण्ड तथा दम्भभरी आत्म-चाटुकारिता को, ताकि तुम सीधे अपनी आत्मा में देख सको और...
निःसंदेह, मेरी शक्ति आश्रम तथा उसकी अवस्थाओं तक सीमित नहीं है। जैसा कि तुम जानते ही हो कि इसका बहुत बड़ा भाग युद्ध को सही...
प्र) आध्यात्मिक पूर्णता में क्या विनोदप्रियता का कोई स्थान है ? उ) अगर कोई सिद्ध कभी नहीं हँसता तो वह उसकी अपूर्णता है । संदर्भ...
“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजन चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ ।” वह...
माताजी और मैं एक ही हैं पर दो शरीरों में, यह आवश्यक नहीं है कि दोनो शरीर सदा एक ही काम करें। इसके विपरीत, क्योंकि...
श्रीमाँ तथा श्रीअरविंद की सहायता हमेशा तुम्हारे लिए प्रस्तुत है। तुम्हें पूरी तरह से उसके प्रति मुड़ना-भर है और वह तुम्हारे ऊपर क्रिया करेगी। संदर्भ...
नरक और स्वर्ग तो बहुधा आत्मा की काल्पनिक अवस्थाएँ होती हैं, बल्कि कहना चाहिये प्राण की अवस्थाएँ, जिन्हें वह प्रयाण के बाद गढ़ता है। नरक...
यहाँ पर कुछ लोग आपको माताजी से महानतर क्यों मानते हैं ? क्या आप दोनों समान स्तर से नहीं हैं ? क्या मनुष्य की आँखों...
… यदि वे (मानसिक तथा प्राणिक) सत्ताएँ सदा सक्रिय रहती हैं और तुम सदा उनकी गतिविधियों के साथ तदात्म रहते हो तब पर्दा सदा बना...
नरक और स्वर्ग तो बहुधा आत्मा की काल्पनिक अवस्थाएँ होती हैं, बल्कि कहना चाहिये प्राण की अवस्थाएँ, जिन्हें वह प्रयाण के बाद गढ़ता है। नरक...