आत्मा का अनुगमन
अपनी आत्मा का अनुगमन करो, अपने मन का नहीं, अपनी आत्मा का, जो सत्य को उत्तर देती है, न कि अपने मन का, जो बाहरी...
अपनी आत्मा का अनुगमन करो, अपने मन का नहीं, अपनी आत्मा का, जो सत्य को उत्तर देती है, न कि अपने मन का, जो बाहरी...
क्या यह सम्भव है कि काम करते समय यह याद रखा जाये कि हमारे द्वारा माताजी ही काम कर रही हैं ? अगर वह कर्म...
“मनुष्य जो कुछ पहले कर चुका है उसे ही हमेशा दुहराते जाना हमारा काम नहीं है, बल्कि हमें नवीन सिद्धियों और अकल्पित विजयों को प्राप्त...
मार्गदर्शक स्वयं तुम्हारें अपने अन्दर है। यदि तुम केवल ‘उसे’ पा सको और ‘उसकी’ आवाज़ सुन सको, तब तुम यह नहीं पाओगे कि लोग तुम्हारी...
दूसरे व्यक्ति के साथ बात करके अवसन्न हो जाना किसी व्यक्ति के लिये बिलकुल संभव है। बातचीत करनेका अर्थ है एक प्रकार का प्राणिक आदान-प्रदान,...
प्रायः ही श्रीअरविंद कहते हैं कि व्यक्ति को श्रीमाँ की शक्ति को शासन करने देना चाहिये । क्या इसका यह अर्थ है कि दोनों की...
श्रीमाताजी सभी साधकों के चारों ओर अपना संरक्षण रखती हैं, परंतु वे यदि अपने ही कर्म या मनोभाव के कारण उस संरक्षण के घेरेसे बाहर...
हमारे योग में एकाग्रता का मतलब है जब चेतना किसी विशेष स्थिति में (जैसे शांति में) या किसी क्रिया में (जैसे अभीप्सा, संकल्प, श्रीमाँ के...