अनुकम्पा और दया
मनुष्यों को उनके दुख-दर्द से छुटकारा दिलाने के प्रबल आवेग को ही अनुकम्पा या करुणा कहा जाता है। किसी के दु:ख – दर्द को देख...
मनुष्यों को उनके दुख-दर्द से छुटकारा दिलाने के प्रबल आवेग को ही अनुकम्पा या करुणा कहा जाता है। किसी के दु:ख – दर्द को देख...
सुख और शान्ति अपने अन्दर बहुत गहराई में और दूर इसलिए अनुभव होते हैं क्योंकि ये चीजें चैत्य सत्ता में होती हैं और चैत्य सत्ता...
किसी भी साधक को कभी भी अयोग्यता के और निराशाजनक विचारों नहीं पोसना चाहिये-ये एकदम से असंगत होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की निजी योग्यता तथा...
यदि अधिकतर भारतीय सचमुच अपने सम्पूर्ण जीवन को सच्चे अर्थ में धार्मिक बना पाते तब हम लोगों की ऐसी स्थिति नहीं होती जैसी आज है।...
जब तक हम वर्तमान विश्व-चेतना में निवास करते हैं तब तक यह जगत, जैसा कि गीता ने कहा है, ‘अनित्यमसुखम’ है। उससे विमुख हो केवल...
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी उतनी ही अधिक रहेगी। और जब भगवती मां की कृपा और...
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों, मिथ्या व्याख्याओं, यहां तक कि स्थूल अन्वेषणों से मिश्रित, विश्वव्यापी...
प्रत्येक का साधना करने और भगवान तक जाने का अपना तरीक़ा होता है और दूसरे उसे कैसे करते हैं इसमें उसे माथापच्ची नहीं करनी चाहिये;...
हमारी प्रकृति भ्रांति तथा क्रिया की बेचैन अनिवार्यता के आधार पर कार्य करती है, भगवान अथाह निश्चलता में मुक्त रूप से कार्य करते हैं। यदि...
मनुष्य को भगवान पर भरोसा रखना, उन पर निर्भर होना चाहिए और साथ-साथ कोई उपयुक्त बनाने वाली साधना करनी चाहिये – भगवान साधना के अनुपात...