2010 संस्मरणश्रीमाँ के श्री चरणमेज़ पर बैठी लिख रही हूं । बिलकुल सामने माँ के श्रीचरण हैं । देखते -देखते मन अपार्थिव आनंद से भर उठा। याद आया –... by प्रीति दास गुप्ता 5 वर्ष ago5 वर्ष ago