तुम भली-भांति समझते हो, है न, कि "संरक्षण के अन्दर" होने का क्या मतलब है? “संरक्षण के बाहर चले जाने"…
और लोग क्या करते हैं उसके बारे में अपने-आपको कष्ट न दो, मैं इस बात को बार-बार नहीं दोहरा सकती।औरों…
यदि सर्वत्र एक जैसी ही चीजें की जाती हैं, हमें उन्हें दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है, हम दूसरों की…
विश्व की अंतिम सीमा तक ... बल्कि उसके भी परे तक अपना विस्तार करो। प्रगति की समस्त आवश्यकताओं को हमेशा…
"साधना" करते समय बाह्य चीजों का बहुत महत्व नहीं होना चाहिये। आवश्यक आन्तरिक शांति हर तरह की परिस्थिति में स्थापित…
चाहे तुम ध्यान लगा कर बैठो या घूमो-फिरो और काम काज करो, जिस बात की तुमसे अपेक्षा की जाती है…
किसी एक चीज़ को बनाने के लिये किसी और चीज़ को तोड़ देना कोई अच्छी नीति नहीं हैं। जो निवेदित…
प्राण है हमारी शक्ति, ऊर्जा , उत्साह तथा प्रभावशाली गति का आसन , लेकिन उसे व्यवस्थित प्रशिक्षण की जरूरत होती…
चैत्य को जानने के लिये तुम्हें अपने प्राण की कामनाओं को जीत लेना और मन को नीरव कर देना चाहिये…
मन की नीरवता का अभ्यास करो। इससे समझने की क्षमता आती है । संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)