वासुदेवः सर्वम् इति

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वासुदेवः सर्वम् इति का यही अर्थ है कि यह सारा जगत् भगवान् है, इस जगत् में जो कुछ है और…

अनिवार्य अवस्था

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जो कुछ ग्रहणशील नहीं है वह सब कुचले जाने का अनुभव करता है, लेकिन जो ग्रहणशील है वह इसके विपरीत…

विजय की प्राप्ति

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विजय की प्राप्ति न केवल बलिदान से, न त्याग से, न ही निर्बलता से होती है। वह केवल ऐसे दिव्य…

धर्म और योग में अंतर

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मधुर मां, योग और धर्म में क्या अन्तर है? आह ! मेरे बच्चे... यह तो ऐसा है मानों तुम मुझसे…

मुक्ति की ओर जाने का मार्ग

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अपनी दुर्बलताओं तथा मिथ्या गतियों को पहचानना और उनसे पीछे हटना मुक्ति की ओर जाने का मार्ग है। किसी अन्य…

भय क्यों ?

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(भय पर श्रीअरविन्द के एक सूत्र के बारे में बतलाते हुए श्रीमां ने कहा : ) ...उन लोगों को भी,…

अन्तरात्मा की भूमिका

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मधुर मां, अन्तरात्मा की क्या भूमिका है?   अन्तरात्मा के बिना तो हमारा अस्तित्व ही न होगा! अन्तरात्मा वह है…

प्रयत्न कभी नहीं छोड़ना चाहिये

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बस, इसी श्रद्धा को तुम्हें अपने अन्दर विकसित करने की आवश्यकता है-युक्ति-तर्क और साधारण समझ के साथ मेल खाने वाली…

मनुष्य की भूल

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प्रकृति में एक ऊपर उठने वाला विकास है जो पत्थर से पौधों में और पौधे से पशु में तथा पशु…

उत्तेजना

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केवल दुर्बल लोग ही उत्तेजित रहते हैं, जैसे ही कोई सचमुच प्रबल बन जाता है वह शांतिपूर्ण, स्थिर, अचंचल बन…