(प्रभो), दिन के साथ – साथ रात में भी हमेशा मेरे साथ रहो।
वर दो कि जाग्रत अवस्था के साथ-साथ नींद में भी मैं हमेशा अपने अन्दर तुम्हारी ही उपस्थिति की वास्तविकता का अनुभव करूँ।
वर दो कि वह हमेशा बनी रहें और मेरे अन्दर वह सतत रूप से, सारे समय परम सत्य, चेतना तथा आनंद का विकास करती रहे।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड – ३५)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…