श्रीअरविंद कहते हैं कि तुम्हे सबसे पहले अपने विषय में सचेतन होना चाहिये, फिर सोचना, और फिर कार्य करना चाहिये। सभी कार्यों से पहले सत्ता के आन्तरिक सत्य का अंतरदर्शन प्राप्त होना चाहिये ; सर्वप्रथम सत्य का अंतदर्शन, फिर इस सत्य का विचार – रूप में सूत्रीकरण, फिर विचार द्वारा कर्म का सृजन होना चाहिये।
यही है सामान्य प्रक्रिया।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…