हर एक के अपने विचार होते हैं और वह श्रीअरविन्द के लेखों में सें अपने विचारों का समर्थन करने वाले वाक्य खोज निकालता है । जो लोग इन विचारों का विरोध करते हैं वे भी उनके लेखों के अनुकूल वाक्य पा सकते हैं । पारस्परिक विरोध इसी तरह काम करता है । जब तक वस्तुओं के बारे में श्रीअरविन्द की समग्र दृष्टि को न लिया जाये तब तक सचमुच कुछ नहीं किया जा सकता ।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग – १)
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…