भगवान के सामने या दूसरों के सामने अपनी कमज़ोरियाँ स्वीकार करना क्या सच्चाई की निशानी है?
दूसरों के सामने क्यों? तुम्हें भगवान के सामने अपनी कमज़ोरियाँ स्वीकारनी चाहियें।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
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