भगवान के सामने या दूसरों के सामने अपनी कमज़ोरियाँ स्वीकार करना क्या सच्चाई की निशानी है?
दूसरों के सामने क्यों? तुम्हें भगवान के सामने अपनी कमज़ोरियाँ स्वीकारनी चाहियें।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
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