. . . संसार का जीवन अपने स्वभाव में अशांति का क्षेत्र है – उचित तरीके से उस पर चलने के लिए व्यक्ति को अपना जीवन और कर्म भगवान को समर्पित करने चाहियें और अपने अन्दर भगवान की शांति को पाने की प्रार्थना करनी चाहिये। जब मन शांत हो जाता है तब व्यक्ति अनुभव करता है कि दिव्य माँ उसके जीवन को सहारा दे रही हैं और वह प्रत्येक चीज़ को उनके हाथों में छोड़ सकता है ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…