. . . संसार का जीवन अपने स्वभाव में अशांति का क्षेत्र है – उचित तरीके से उस पर चलने के लिए व्यक्ति को अपना जीवन और कर्म भगवान को समर्पित करने चाहियें और अपने अन्दर भगवान की शांति को पाने की प्रार्थना करनी चाहिये। जब मन शांत हो जाता है तब व्यक्ति अनुभव करता है कि दिव्य माँ उसके जीवन को सहारा दे रही हैं और वह प्रत्येक चीज़ को उनके हाथों में छोड़ सकता है ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…