श्रीकृष्ण सबमें वास करते हैं

न केवल सजीव प्राणियों में बल्कि निर्जीव वस्तुओं में भी हमें नारायण के दर्शन करने चाहिये, शिव का अनुभव करना चाहिये और शक्ति के आलिंगन में स्वयं को समर्पित कर देना चाहिये। जब हमारी आंखें-जिन पर अभी जड़-भौतिक के विचार की ही पट्टी बंधी हुई है-परम ‘प्रकाश’ की ओर खुलेंगी, तब हम देखेंगे कि कुछ भी निर्जीव नहीं है, बल्कि सभी चीजों में वही परम प्राण, मानस, विज्ञान, सत्, चित् और आनन्द समाया हुआ है; भले वह उनमें अभिव्यक्त हो या अनभिव्यक्त, उनमें छिपा हुआ हो या विकसित या विकास की प्रक्रिया में हो या फिर एकदम से अदर्शनीय हो और उसे हम जड़ की संज्ञा दे दें। लेकिन ‘हर एक चीज’ सचमुच सजीव ही होती है। सभी चीजों में प्रभु का आत्म-सचेतन व्यक्तित्व पनपता रहता है और समय आने पर उसमें से फूट पड़ने में परमानन्द का अनुभव करता है-जैसे फल, फूल, धरती, पेड़, धातु-सभी चीजों में वह हर्ष समाया हुआ है और उसके बारे में तुम सचेतन हो सकते हो, क्योंकि सभी में श्रीकृष्ण वास करते हैं। यह मत सोचो कि भौतिक रूप से उन्होंने उनमें प्रवेश किया, क्योंकि सचमुच देश और काल का कोई अस्तित्व ही नहीं है, यह सब तो मानव-दृष्टि के लिए बनाये गये संयोजन और रूढ़ियां हैं। वास्तव में, भगवान् की रचनात्मक कला की ये सारी विशेषताएं हैं-और हम सभी प्रत्येक वस्तु में उस सच्चिदानन्द की अनुभूति पा सकते हैं।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१३)

शेयर कीजिये

नए आलेख

एक प्रोत्साहन

" जिस समय हर चीज़ बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत…

% दिन पहले

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले