हे प्रभों, आज प्रात: तूने मुझे यह आश्वासन दिया है कि जब तक तेरा कार्य सम्पन्न नहीं हो जाता, तब तक तू हमारे साथ रहेगा, केवल एक चेतना के रूप में ही नहीं जो पथ-प्रदर्शन करती और प्रदीप्त करती है बल्कि कार्यरत एक गतिशील ‘उपस्थिती’ के रूप में भी । तूने अचूक शब्दों में वचन दिया है कि तेरा सर्वांश यहा विध्यमान रहेगा और पार्थिव वातावरण को तब तक न छोड़ेगा जब तक पृथ्वी का रूपांतर नहीं हो जायेगा। वर दे कि हम इस अद्भुत ‘उपस्थिती’ के योग्य बन सके, अब से हमारे अंदर की प्रत्येक वस्तु तेरे उदात्त कार्य को पूर्ण करने हेतु आधिकाधिक परिपूर्णता से समर्पित होने के एकमात्र संकल्प पर एकाग्र हो ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…