श्रीअरविन्द हमेशा हमारे साथ हैं, हमें प्रकाश देते हैं, रास्ता दिखाते हैं ओर हमारी रक्षा करते हैं । हम पूर्णनिष्ठ बनकर ही उनकी कृपा के पात्र बन सकेंगे । -श्रीमाँ
श्रीअरविंद ने , सामूहिक सिद्धि के मुहूर्त को शीघ्र लाने के लिए, अपनी देह की सिद्धि का परित्याग कर, परम निस्स्वार्थ भाव से अपने शरीर का त्याग किया है। निश्चय ही, यदि धरती अधिक प्रतिसंवेदनशील होती, तब वह आवश्यक नहीं होता ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…