श्रीअरविंद ने , सामूहिक सिद्धि के मुहूर्त को शीघ्र लाने के लिए, अपनी देह की सिद्धि का परित्याग कर, परम निस्स्वार्थ भाव से अपने शरीर का त्याग किया है। निश्चय ही, यदि धरती अधिक प्रतिसंवेदनशील होती, तब वह आवश्यक नहीं होता ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
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