जीवन से और लोगों से घृणा और विरक्ति के कारण इस योग के लिए नहीं आना चाहिये।
कठिनाइयों से भाग जाने के लिए यहाँ नहीं आना चाहिये। प्रेम की मधुरता और संरक्षण पाने के लिए भी यहाँ नहीं आना चाहिये, क्योंकि यदि व्यक्ति उचित मनोभाव अपनाये तो भगवान् के प्रेम और संरक्षण का आनन्द हर जगह मिल सकता है।
जब तुम अपने-आपको पूर्णतया भगवान् की सेवा में दे देना चाहो, जब अपने-आपको पूर्णतया भगवान् के कार्य के लिए समर्पित करना चाहो, अपने-आपको देने और सेवा करने के आनन्द के लिए देना चाहो, बदले में कुछ माँगे बिना-अपने-आपको देने और सेवा करने की सम्भावना को छोड़ कर तो तुम यहाँ आने के लिए तैयार हो और तुम द्वार को पूरी तरह खुला पाओगे।
मैं तुम्हें वही आशीर्वाद देती हूँ जो मेरे सभी बच्चों को मिलते हैं, वे चाहे संसार में कहीं भी क्यों न हों, और तुमसे कहती हूँ : “अपने-आपको
तैयार करो, मेरी सहायता हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी।”
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…