श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

मेरे शब्दों की व्याख्या

​ ऐसा लगता है कि तुम यह मानते हो कि मैं एक बात कहती हूं और मेरा मतलब कुछ और होता है । यह अनर्गल बात हैं। जब मैं बोलती हूं, तो स्पष्ट बोलती हूं और मैं जो कहती हूं मेरा मतलब हमेशा वही होता है ।

जब मैं कहती हूं : योग की पहली शर्त है शान्त और स्थिर रहना- तो मेरा यही मतलब होता है ।

जब मैं कहती हूं कि बातचीत बेकार है और वह केवल गड़बड़ की ओर ले जाती है, शक्ति के अपव्यय और जो कुछ थोड़ा-बहुत प्रकाश तुम्हारे पास है उसके भी क्षय की ओर ले जाती है-तो इसका यहीं अर्थ होता है, और कुछ नहीं ।

जब मैं कहती हूं कि मैंने किसी को अपनी ओर से बोलने और अपने मनमाने ढंग से मेरे शब्दों की व्याख्या करने का अधिकार नहीं दिया, तो मेरा यहीं मतलब होता हैं, और कुछ नहीं ।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – १)

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले