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मेरे निर्जन कारावास का भूगोल

मेरा निर्जन कारागृह था नौ फीट लम्बा और पाँच-छ: फीट चौडा ,इसमें कोई खिडकी नहीं, सामने था एक बृहत् लोह कपाट; यह पिंजरा ही बना पेश निर्दिष्ट वासस्थान। कमरे के बाहर था एक छोटा-सा पथरीला आँगन और ईंट की ऊँची दीवार, सामने था लकड़ी का दरवाज़ा। उस दरवाज़े के ऊपरी भाग में  मनुष्य की आँख की ऊंचाई पर था एक गोलाकार छेद, दरवाज़ा बन्द होने पर सन्तरी उसमें आँख सटा थोड़ी-थोड़ी देर में झाँकता था कि कैदी क्या कर रहा है। किन्तु मेरे आँगन का दरवाज़ा प्रायः खुला रहता। ऐसे छ: कमरे पास-पास थे, इन्हें कहा जाता था ६ ‘डिक्री’। डिक्री का अर्थ है, विशेष दण्ड का कमरा, न्यायाधीश या जेल सुपरिटेंडेंट के हुकुम से जिन्हें निर्जन कारावास का दण्ड मिलता था उन्हें ही इन छोटे-छोटे गह्वरों में रहना होता था। इन निर्जन कारावासों की भी श्रेणी होती है। जिन्हें विशेष सजा मिलती है उनके आँगन का दरवाज़ा बन्द रहता है। मनुष्य संसार से पूर्णतया वञ्चित हो जाते हैं, उनका जगत् से एकमात्र सम्पर्क रह जाता है सन्तरी की आँखों और दो समय खाना लाने वाले कैदी से।

सी.आई.डी. की नज़रों में हेमचन्द्र दास मुझसे भी ज्यादा आतंककारी थे, इसीलिए उनके लिए ऐसी व्यवस्था की गयी। इस सज़ा के ऊपर भी सज़ा है-हाथ-पैर में हथकड़ी और बेडी पहन निर्जन कारावास में रहना। यह चरम दण्ड केवल जेल की शान्ति भंग
करने वालों या मारपीट करने वालों के लिए नहीं, बार-बार काम में ग़फ़लत करने से भी यह दण्ड मिलता है। निर्जन कारावास के मकद्दमे के आसामी को दण्ड के रूप में ऐसा कष्ट देना नियम के विरुद्ध है परन्त स्वदेशी या ‘वन्देमातरम्’ कैदी नियम से बाहर हैं, पुलिस की इच्छा से उनके लिए भी सुव्यवस्था होती है।

संदर्भ : कारावास की कहानी 

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