मेरा स्पर्श सदैव बना रहता है; बस तुम्हें उसे अनुभव करना सीखना होगा। न केवल किसी माध्यम द्वारा – जैसे कलम के स्पर्श से, यानि मुझे पत्र लिख कर – बल्कि उसे तुम्हें मन, हृदय, प्राण तथा शरीर पर प्रत्यक्ष क्रिया के रूप में अनुभव करना सीखना होगा। तब कठिनाइयाँ बहुत कम हो जायेंगी या कठिनाइयाँ एकदम विलीन हो जायेंगी।
संदर्भ : श्रीअरविंद अपने बारे में
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…