मुझे इतना डर क्यों लगता है?
क्योंकि तुम्हारा ख्याल है कि मैं तुम्हारे ऊपर अपनी इच्छा लादना चाहती हूं; लेकिन यह गलत है। इसके विपरीत, मैं तुम्हें अपने लिए निर्णय करने के लिए बिलकुल स्वाधीन छोड़ना चाहती हूं। लेकिन जिसे तुम नहीं जान सकते, जिसकी तुममें पूर्वदृष्टि नहीं है, मैं उसे देख सकती हूं और जानती हूं और मैं जो देखती हूं वह तुम्हें बतलाती हूं, बस इतना ही। यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम मेरे ज्ञान का उपयोग करो या न करो। तुम्हारा एक वर्ष तक प्रतीक्षा करने का निश्चय बुद्धिमत्तापूर्ण है और मुझे खुशी है कि तुमने ऐसा निश्चय किया है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…