मरने से पहले, मिथ्यात्व अपनी पूरी पेंग में उठता है ।

अभी तक मनुष्य केवल विध्वंस के पाठ को ही समझता है। क्या मनुष्य के ‘सत्य’ की ओर आँखें खोलने से पहले उसे आना ही पड़ेगा ?

मैं सबसे प्रयास की मांग करती हूँ ताकि उसे न आना पड़े।

केवल ‘सत्य ‘ ही हमारी रक्षा कर सकता है, वाणी में सत्य, क्रिया में सत्य, संकल्प में सत्य, भावों में सत्य । यह ‘सत्य’ की सेवा करने या नष्ट हो जाने के बीच एक चुनाव है ।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)

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