मरने से पहले, मिथ्यात्व अपनी पूरी पेंग में उठता है ।
अभी तक मनुष्य केवल विध्वंस के पाठ को ही समझता है। क्या मनुष्य के ‘सत्य’ की ओर आँखें खोलने से पहले उसे आना ही पड़ेगा ?
मैं सबसे प्रयास की मांग करती हूँ ताकि उसे न आना पड़े।
केवल ‘सत्य ‘ ही हमारी रक्षा कर सकता है, वाणी में सत्य, क्रिया में सत्य, संकल्प में सत्य, भावों में सत्य । यह ‘सत्य’ की सेवा करने या नष्ट हो जाने के बीच एक चुनाव है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…