अतिमानस अपने-आपमें केवल ‘सत्य’ ही नहीं, बल्कि मिथ्यात्व का नितान्त निषेध है। अतिमानस ऐसी चेतना में कभी नहीं उतरेगा, प्रतिष्ठित और अभिव्यक्त न होगा जो मिथ्यात्व को आश्रय देती हो।
स्वभावत: मिथ्यात्व को जीतने की पहली शर्त है, झूठ न बोलना, यद्यपि यह केवल प्रारम्भिक चरण ही है। अगर लक्ष्य को पाना है तो सत्ता में और उसकी सब गतिविधियों में निरपेक्ष, समग्र निष्कपटता को स्थापित करना ही होगा ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
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