अतिमानस अपने-आपमें केवल ‘सत्य’ ही नहीं, बल्कि मिथ्यात्व का नितान्त निषेध है। अतिमानस ऐसी चेतना में कभी नहीं उतरेगा, प्रतिष्ठित और अभिव्यक्त न होगा जो मिथ्यात्व को आश्रय देती हो।
स्वभावत: मिथ्यात्व को जीतने की पहली शर्त है, झूठ न बोलना, यद्यपि यह केवल प्रारम्भिक चरण ही है। अगर लक्ष्य को पाना है तो सत्ता में और उसकी सब गतिविधियों में निरपेक्ष, समग्र निष्कपटता को स्थापित करना ही होगा ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…