माताजी की सतत उपस्थिति अभ्यास के द्वारा आती हे; साधना में सफलता पाने के लिये भागवत कृपा अत्यंत आवश्यक है, पर अभ्यास ही वह चीज है जो कृपा-शक्ति के अवतरण के लिये तैयारी करती है ।
तुम्हें भीतर की ओर जाना सीखना होगा, केवल बाहरी चीजों में ही रहना बंद करना होगा, मन को स्थिर करना होगा और अपने अंदर होनेवाली माताजी की क्रिया के विषय में सचेतन होने की अभीप्सा करनी होगी ।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
धरती पर कठिन घड़ियाँ मनुष्यों को अपने तुच्छ निजी अहंकार को जीतने और सहायता तथा…
अगर मन, प्राण और शरीर का पुनर्जन्म नहीं होता, केवल चैत्य ही फिर से जन्म…
हमारी प्रकृति भ्रांति तथा क्रिया की बेचैन अनिवार्यता के आधार पर कार्य करती है, भगवान…
प्रभो, मैं तेरे सम्मुख हूं, दिव्य ऐक्य की धधकती अग्नि में प्रज्वलित हवि की तरह…
हमेशा भगवान् की उपस्थिति में ही निवास करो इस अनुभूति में रहो कि यह उपस्थिति…