मन की संकीर्णता से प्रेम करने का क्या तात्पर्य है?
लोग संकीर्ण रहना पसन्द करते हैं; वे उनके अपने सीमित विचारों, भावनाओं, मतों, रुचियों से चिपके रहते हैं और अगर कोई यह कोशिश
करे कि वे अधिक व्यापक रूप से सोच सकें तो वे विक्षुब्ध हो उठते हैं, नाराज़ हो जाते हैं और शंका से भर जाते हैं-इसे कहते हैं मन की
संकीर्णता से प्रेम करना।
संदर्भ : योग के तत्व
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…