भय एक अपवित्रता है, सबसे बड़ी अपवित्रताओं में से एक, उनमें से एक जो उन भगवद्विरोधी शक्तियों के अत्यंत प्रत्यक्ष परिणाम होती हैं जो पृथ्वी पर भागवत कार्य को नष्ट कर देना चाहती हैं, और जो पृथ्वी पर भागवत कार्य को नष्ट कर देना चाहती हैं; और जो लोग सचमुच योग करना चाहते हैं उनका सबसे पहले कर्तव्य है अपनी सारी शक्ति, सारी सच्चाई तथा जितनी सहिष्णुता वे धारण कर सकें उस सबसे साथ अपनी चेतना में से भय की छाया तक को निकल फेंकना। मार्ग पर चलने के लिए हमें निर्भय होना होगा, और कभी उस क्षुद्र, तुच्छ, दुर्बल, निकृष्ट, अपनी ही ओर सिकुड़ जाने के भाव को, जो कि भय है, प्रश्रय नहीं देना चाहिये।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६

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